Thursday, July 29, 2010

एक पी.जे. अब्दुल कलाम डा - राष्ट्रपति और व्यवसायी

"धन्य नम्र हैं, क्योंकि वे इस दुनिया वारिस" बाइबिल का दावा है. भारत रत्न डॉ. Avul पाकिर Jainulabdeen अब्दुल कलाम एक विनम्र आत्मा, तमिलनाडु में रामेश्वरम में पैदा हुआ, 2002 में 71 वर्ष की उम्र में भारतीय संघ के अध्यक्ष जहाज करने के लिए गुलाब. हालांकि वह 71 था, वह एक 17 वर्षीय लड़के के एक उत्साह था. उसे बुलाओ एक दूरदर्शी के रूप में या एक एरोनॉटिकल इंजीनियर, वैज्ञानिक या एक, या एक मिसाइल आदमी, फिर भी वह और अधिक अपने मानव संबंधों के लिए लोकप्रिय है. वह हमेशा एक व्यक्ति जो वकालत के रूप में याद किया जाएगा सपने और विकास के लिए. डा. कलाम ने निश्चित रूप से भारत की कल्पना की अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मैं उसे डॉक्टर के रूप में कहते हैं, वह विश्व भर में विश्वविद्यालयों से नहीं क्योंकि 30 डॉक्टरेट प्राप्त नहीं, क्योंकि वह अभी भी एक स्नातक है, इसलिए नहीं कि वह पद्म विभूषण या Bharth रत्न के एक प्राप्तकर्ता गया था क्योंकि वह तो उच्चतम बुलाया स्थिति आयोजित नहीं है, एक परमाणु वैज्ञानिक के रूप में उनकी भूमिका की वजह से नहीं, राष्ट्रपति की, लेकिन उनके प्रेरणादायक भाषण के लिए बच्चों को प्रेरित करने के लिए और उन्हें बड़ा सपना करने के लिए. वह के साथ युवा भारतीय समाज doctored उनके नीचे के इस 'दिल के भाषण से. वह खुद को 'पवित्र Thirukkural' और कहा कि निविदा दिल में जादू काम किया पढ़ कर प्रेरणा आकर्षित किया. वह सुनिश्चित करने के लिए एक चिकित्सक है, क्योंकि वह समाज शुद्ध है. अब्दुल कलाम पुस्तक 'भारत 2020 के माध्यम से अपने' दृष्टि प्रकट. किताब एक ज्ञान महाशक्ति में रणनीति है कि 2020 तक देश के विकास के मार्गदर्शन करेगा, डाला गया है. Dr.A.P.J. अब्दुल कलाम ने खुद के परमाणु कार्यक्रम में उनके नेतृत्व के माध्यम से राष्ट्र के विकास में भाग लिया. कलाम एक शिक्षक ख़ासकर था. डॉ. कलाम प्रथाओं शाकाहार और कहा कि केवल साथी प्राणियों के लिए उसकी दया सबूत. वह अपनी 'आत्मकथा के माध्यम से अपने अनुभव साझा किए और आग के पंख' विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लाभ पाने के बारे में एक धारणा आगे प्रेरित किया. डा. A.P.J. अब्दुल कलाम सिर्फ पदार्थ के एक आदमी और एक करिश्माई नेता नहीं है, लेकिन यह भी एक महात्मा अपने जीवन भर.



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डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम - पीपुल्स राष्ट्रपति और पीपुल्स व्यवसायी

"धन्य नम्र हैं, क्योंकि वे इस दुनिया वारिस" बाइबिल का दावा है. भारत रत्न डॉ. Avul पाकिर Jainulabdeen अब्दुल कलाम एक विनम्र आत्मा, तमिलनाडु में रामेश्वरम में पैदा हुआ, 2002 में 71 वर्ष की उम्र में भारतीय संघ के अध्यक्ष जहाज करने के लिए गुलाब. हालांकि वह 71 था, वह एक 17 वर्षीय लड़के के एक उत्साह था.


डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

Tuesday, July 27, 2010

डॉ. कलाम "मेरी माँ " 01 अगस्त 2008


1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, यह रामेश्वरम में हमारे परिवार के लिए मुश्किल समय था. मैं एक दस साल का लड़का था तब. युद्ध लगभग युद्ध के बादल से की थी रामेश्वरम के हमारे दरवाजे तक पहुँच था पहले से ही कोलंबो पहुँचे. लगभग सब कुछ खाद्य वस्तुओं में से एक के लिए कुछ भी दुर्लभ थे. हमारा एक बड़े संयुक्त परिवार था. हमारे परिवार का आकार पांच बेटे और पाँच बेटियों और जिनमें से तीन परिवारों था. मैं अपने घर में कभी भी तीन cradles देखने के लिए इस्तेमाल किया. मेरी दादी और माँ लगभग इस बड़े दल के प्रबंध थे. खुशी और उदासी से alternated घर में माहौल. मैं सुबह चार बजे उठना, नहाना और गणित सीखने के लिए मेरे शिक्षक Swamiyar के पास गया था. उन्होंने छात्रों अगर वे स्नान नहीं लिया था स्वीकार नहीं करेंगे. वह एक अद्वितीय गणित के शिक्षक था और वह करने के लिए स्वतंत्र ट्यूशन के लिए एक वर्ष में केवल पांच छात्रों लेने के लिए इस्तेमाल किया. मेरी माँ मुझसे पहले उठ उपयोग किया है, और मुझे स्नान दिया और मुझे ट्यूशन के लिए जाने के लिए तैयार किया. मैं 5:30 पर वापसी उपयोग करने के लिए जब मेरे पिता ने मुझे नमाज और कुरान शरीफ को ले अरबी स्कूल में सीखने के लिए प्रतीक्षा कर रहे होंगे. उसके बाद मैं रामेश्वरम रोड रेलवे स्टेशन जाने के लिए उपयोग किया है, तीन किलोमीटर दूर अखबार लेने के लिए. मद्रास धनुषकोडी मेल स्टेशन के माध्यम से पारित लेकिन बंद नहीं करेगा, क्योंकि यह युद्ध का समय था. अखबार के बंडल चल ट्रेन से मंच करने के लिए फेंक दिया जाएगा.
मैं कागज जमा और रामेश्वरम शहर के आसपास चलाने के लिए और पहले शहर में एक समाचार पत्र वितरित करता था. मेरे बड़े चचेरे भाई एजेंट जो श्रीलंका के लिए दूर बेहतर आजीविका की खोज में चला गया था. वितरण के बाद, मैं से 8 बजे घर आया करते थे. मेरी माँ ने मुझे अन्य बच्चों की तुलना में, क्योंकि मैं अध्ययन किया गया और एक साथ काम कर रहे एक विशेष कोटा के साथ एक सरल नाश्ता दे देंगे. स्कूल के बाद शाम को खत्म हो जाता है, फिर मैं Rameswaran आसपास के बकाया वसूली के लिए ग्राहकों से जाना जाएगा. मैं अभी भी एक घटना है जो मैं आपके साथ साझा करने के लिए चाहेंगे याद है. मैं एक जवान लड़के के रूप में चल रहा था, चल रहा है और सभी एक साथ पढ़ रही है. एक दिन, जब अपने सभी भाइयों और बहनों बैठे थे और खाने, मेरी माँ मुझे दे चपाती (भले ही हम चावल, गेहूं राशन था भक्षण करते हैं पर चला गया). जब मैं खाना खा चुका है, मेरे बड़े भाई ने मुझे निजी तौर पर बुलाया और डांटा "कलाम क्या तुम जानते हो क्या हो रहा था? आप रोटी खाने पर गया था, और माँ ने तुम्हें देने पर चला गया. वह अपने सभी chappatis आप को दी गई है. यह मुश्किल समय है. एक जिम्मेदार बेटा बनो और अपनी माँ "भूखा नहीं बना. पहली बार मैं एक कांप सनसनी था और मैं खुद पर नियंत्रण नहीं कर सके. मैं अपनी माँ के पास पहुंचा और उसे गले लगाया. मैं भी 5 वीं कक्षा में पढ़ रहा था, हालांकि, मैं अपने घर में एक खास जगह थी, क्योंकि मैं परिवार में पिछले लड़का था. वहाँ बिजली नहीं करता था. हमारे घर में मिट्टी के तेल के दीपक द्वारा जलाई गई थी वह भी बीच में 7 से 9 PM. मेरी माँ ने मुझे विशेष रूप से एक छोटे से मिट्टी के तेल के लैंप दिया ताकि मैं लिए 11 बजे तक अध्ययन कर सकते हैं. मैं अभी भी एक पूर्णिमा की रात जो चित्रण किया गया है में मेरी किताब "विंग्स ऑफ फायर 'में शीर्षक" माँ के साथ मेरी माँ याद है. "


 मां  "दिन जब मैं दस था मैं अब भी याद है, अपनी गोद में मेरे बड़े भाई और बहनों की ईर्ष्या के लिए सो रही है. यह पूर्णिमा की रात थी, मेरी दुनिया तुम ही माँ पता था!, मेरी माँ! आधी रात में जब मैं आँसू मेरे घुटने पर गिरने के साथ जाग उठा आप अपने बच्चे को, मेरी माँ के दर्द को जानता था. अपनी देखभाल के हाथ, नम्रता से दर्द दूर तुम्हारा प्यार, अपनी देखभाल, अपने विश्वास मुझे शक्ति दी, डर के बिना और उसकी शक्ति के साथ दुनिया का सामना करने के लिए. हम फिर महान प्रलय दिवस पर मिलेंगे. मेरी माँ! 

यह मेरी माँ जो तीन साल नब्बे रहते थे, प्यार की एक औरत है, और दिव्य प्रकृति के सभी एक महिला के ऊपर दया की एक महिला की कहानी है. मेरी माँ प्रदर्शन पाँच बार नमाज रोज. नमाज के दौरान, मेरी माँ हमेशा angelic देखा. हर बार मैं नमाज मैं प्रेरित किया गया था और चले गए के दौरान उसे देखा








डा. ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा

राष्ट्रपति भवन में कलाम की झोपड़ी तोड़ दी गई !!!!

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की विख्यात 'चिंतन कुटी' अब राष्ट्रपति भवन में नहीं दिखेगी।

मुगल गार्डन में बनी यह झोपड़ी हटा दी गई है। 
राष्ट्रपति भवन को उसके मूल स्वरूप में लाने का काम शुरू होने के बाद इस झोपड़ी को हटाया गया।

मणिपुरी शैली की यह झोपड़ी पूर्व राष्ट्रपति कलाम के कार्यकाल में बनाई गई थी। कलाम वहां रोज सुबह-शाम बैठते थे। कलाम प्यार से इसे 'चिंतन कुटी' (थिंकिंग हट)कहा करते थे। आगंतुकों को वह बताते थे कि उनकी दो किताबें इसी चिंतन कुटी के सोफे पर लिखी गई थीं।

इस झोपड़ी ने कलाम की रचनात्मकता को और धार दे दिया हो, पर पुनर्निर्माण के लिए बनाई गई विशेषज्ञ समिति के सदस्यों की आंखों में यह झोपड़ी खटक गई। उनके मुताबिक लुटियन द्वारा डिजाइन की गई इंग्लिश और मुगल शैली के योग से बने इस अद्भुत स्थापत्य की शोभा को यह झोपड़ी कम कर रही थी।

कलाम की चिंतन झोपड़ी ध्वस्त

विशेष संवाददाता... नई दिल्ली, 16 जुलाई। ... राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन से पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मणिपुरी शैली में निर्मित 'थिंकिंग हट' हटा दी गई है ताकि मुगल गार्डन को उसका पुराना स्वरूप फिर से लौटाया जा सके।

कलाम के लिए निर्मित यह 'हट' उनके कार्यकाल के दौरान बनाई गई थी जहां वे सुबह-शाम बैठकर चिंतन किया करते थे। वे प्राय: इसे प्यार से अपनी 'थिंकिंग हट' कहा करते थे और यहां आने वाले आगंतुकों को बताते थे कि उनकी दो किताबें इन्हीं सोफासेटों पर बैठकर लिखी गई हैं।


गौरतलब है कि राष्ट्रपति भवन स्थित मुगल गार्डन को एडविन ल्यूटियंस नामक डिजायनर ने तैयार किया था जो अंग्रेजी और मुगल कालीन कला का अद्भुत समन्वय था। मुगल गार्डन को उसका पुराना स्वरूप लौटाने के लिए गठित कमेटी ने यह भी सुझाव दिया है कि थिंकिंग हट के साथ कलाम द्वारा स्थापित मॉडर्न-डे म्यूजिकल फाउंटेन को भी गार्डन से हटा दिया जाए। राष्ट्रपति भवन की जीर्णोद्धार योजना एक महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है जिसके तहत रायसीना हिल स्थित उन सभी इमारतों का पुनर्रुद्धार किया जा रहा है जो कि स्वतंत्र भारत की अभूतपूर्व निशानियों के तौर पर विश्व भर में प्रसिद्ध है। कलाम की ओर से इस बारे में फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की गई है। इस पुनर्रूद्धार कार्य में तीन कमेटियों की जिम्मेदारी है लेकिन यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की भी इसमें व्यक्तिगत रुचि बताई जा रही है।

Friday, July 9, 2010

मेरा भारत और एक छोटा सा प्रश्न

बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं. बस जी नहीं किया. इस बीच बड़ी बड़ी घटनायें हो गयीं भारत में. मैं कुछ लिखने के बजाय बस यह सोचती रह गयी कि क्या हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इसी भारत का सपना देखा था. अगर नहीं तो कहाँ चूक गये हम.  आज अन्तर्जाल पर ऐसे ही विचरते हुए श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के एक लेख ने ध्यान आकर्षित किया, शीर्षक था–’भारतीय होने पर गर्व करें’. आज के समय में यदि राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति ने मेरे मानसपटल पर छाप छोड़ी है तो वे हैं हमारे माननीय राष्ट्रपति महोदय. अत्यंत ज्ञानी, विद्वान तथा अनुभवी श्री कलाम अपने ज्ञान, सकारात्मक एवं वैज्ञानिक सोच तथा विनम्र व्यवहार के कारण सदा ही मेरे लिये श्रद्धेय रहे हैं. उनके शब्दों ने मन में हमेशा एक आशा तथा ऊर्जा का संचार किया है. अत: उनके लेखन के प्रति मेरा सहज आकर्षण स्वाभाविक है. मुझे नहीं पता कि इस लेख को कितने लोगों ने पढ़ा है पर इस लेख को पढ़ कर मुझे ये अवश्य लगा कि  हर भारतीय को इसे पढ़ना चाहिये. अत: उनके इस लेख के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ जिन्होंने मुझे न सिर्फ़ अत्यधिक प्रभावित किया अपितु मेरी सोच को एक नयी दिशा दी.
” भारत को लेकर मेरे तीन दृष्टव्य हैं. हमारे इतिहास के तीन हज़ार सालों में दुनिया भर के लोगों ने हम पर आक्रमण किये हैं, हमारी ज़मीनें हथियायी हैं, हमारे दिमाग़ों पर विजय पायी है. सिकंदर के बाद से  ग्रीक, तुर्क, मुसलमान, पुर्तगाली, बर्तानी, फ़्रांसीसी तथा डच सभी आये, हमें लूटा और जो हमारा था वह ले के चले गये. किंतु इसके बाद भी हमने किसी राष्ट्र के साथ ऐसा नहीं किया. हमने कभी किसी पर विजय पाने की कोशिश नहीं की, उनकी ज़मीन, सभ्यता तथा इतिहास पर आधिपत्य स्थापित करने की चेष्टा नहीं की. अपना जीने का ढंग किसी पर नहीं थोपा. क्यों? क्योंकि हम दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं.
इसीलिये भारत को लेकर मेरा पहला दृष्टव्य स्वतंत्रता से संबधित है. मुझे लगता है कि भारत को यह द्रष्टव्य १८५७ में मिला जब स्वतंत्रता की लड़ाई की शुरुआत हुई. हमें अपनी इस स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिये, इसका सम्मान करना चाहिये. यदि हम स्वतंत्र नहीं है तो कोई हमारा सम्मान नहीं करेगा.
भारत को लेकर मेरा दूसरा दृष्टव्य प्रगति को लेकर है. ५० सालों से हम एक विकासशील देश हैं. अब समय आ चुका है कि हमें स्वयं को विकसित देश के रूप में देखना होगा. जी.डी.पी. की दृष्टि से हम विश्व के प्रथम पाँच राष्ट्रों में से हैं. अधिकांश क्षेत्रों में हमारी विकास दर १० % के लगभग है. हमारा गरीबी का स्तर गिरा है. हमारी उपलब्धियाँ विश्व स्तर पर पहचान पा रही हैं. इसके बाद भी हम में आत्म-विश्वास की कमी  है जो हम खुद को एक विकसित, आत्म निर्भर तथा आश्वस्त देश के रूप में नहीं देख पाते. क्या यह उचित है?
मेरा तीसरा द्रष्टव्य है कि भारत को विश्व के सामने खड़ा होना होगा. शक्तिशाली शक्ति का ही सम्मान करते हैं. हमें न सिर्फ़ सैन्य दृष्टि से अपितु आर्थिक दृष्टि से भी सुदृढ़ होना होगा. ये दोनों साथ-साथ चलते हैं.
 

……..
आण्विक ऊर्जा विभाग तथा डी.आर.डी.ओ. की हाल ही में ११ तथा १३ मई को हुए नाभिकीय परीक्षणों में महत्वपूर्ण भागीदारी रही. अपनी टीम के साथ इन परीक्षणों मे भाग लेने तथा विश्व को यह दिखा पाने कि भारत यह कर सकता है एवं अब हम एक विकासशील देश नहीं अपितु विकसित देशों में एक हैं, की खुशी मेरे लिये अतुलनीय है. इससे मुझे भारतीय होने पर बेहद गर्व हुआ. हमने ‘अग्नि’ के पुनरागमन के लिये भी एक अन्य ढाँचा तैयार किया है जिसके लिये हमने एक अत्यंत हलके पदार्थ का विकास किया है. बहुत ही हलका पदार्थ जिसे कार्बन-कार्बन कहते हैं.
एक दिन ‘निज़ाम इन्स्टिट्यूट ऑव़ मेडिकल साइंसज़’ के एक हड्डी रोग विशेषज्ञ मेरी प्रयोगशाला में आये. उन्होंने वह पदार्थ उठाया और पाया कि वह बहुत हल्का था. उसके बाद वह मुझे अपने अस्पताल ले गये, मरीज़ों से मिलवाने के लिये. वहाँ छोटे-छोटे लड़के और लड़कियाँ भारी भारी धात्विक कैलीपर पहने हुए थे. लगभग तीन-तीन किलो वज़न वाले कैलीपर पहन कर ये बच्चे किसी प्रकार अपने पैरों को घसीट रहे थे. डॉक्टर ने मुझसे कहा – ‘मेरे मरीज़ों का कष्ट दूर कर दीजिये’. मात्र तीन हफ़्ते में हमने ३०० ग्राम के वज़न वाले कैलीपर का निर्माण कर लिया. जब हम उन्हें लेकर अस्पताल गये तो बच्चे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाये. अब वे घिसटने की बजाय आराम से चल सकते थे. उनके माता-पिता के नेत्र हर्षातिरेक से भर आये. इस कार्य से मुझे स्वर्गीय-सुख मिला.
हम अपने देश में अपनी ही क्षमताओं और उपलब्धियों को पहचानने में क्यों हिचकिचाते हैं? हम एक अत्यंत गौरवशाली राष्ट्र हैं. हमारी सफलता की कितनी ही अद्भुत कहानियाँ हैं जिन्हें हम अनदेखा कर देते हैं. क्यों? हम विश्व में गेहूँ के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. हम चावल के भी दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. दुग्ध-उत्पादन में हम प्रथम स्थान पर हैं. ‘रिमोट सेन्सिंग सैटेलाइट’ के क्षेत्र में भी हम प्रथम हैं.
डॉ. सुदर्शन को देखिये. उन्होंने एक आदिवासी गाँव को स्व-पोषित आत्म-निर्भर इकाई में बदल दिया. ऐसे लाखों उदाहरण हैं किंतु हमारे मीडिया को मुख्यत: बुरी खबरों, असफलताओं तथा आपदाओं की धुन लगी रहती है. एक बार मैं तेल अवीव में था और इज़राइली समाचार पत्र पढ़ रहा था. यह दिन उस दिन के बाद का था जब बहुत से हमले और बमबारी हो के चुकी थी. बहुत से लोग काल का ग्रास बन चुके थे. हमस ने हमला किया था. किंतु समाचार पत्र के पहले पन्ने पर एक ज्यूइश सज्जन का चित्र था जिन्होंने पाँच साल में अपनी बंजर रेगिस्तान ज़मीन को हरे-भरे बाग़ मे बदल दिया. हर इंसान ने उठते ही ऐसी प्रेरणाप्रद तस्वीर देखी. हत्या, बमबारी तथा मृत्यु के भयावह समाचार भीतर के पन्नों में अन्य समाचारों के बीच दफ़्न थे.
भारत में हम सिर्फ़ मृत्यु, बीमारी, आतंकवाद तथा अपराध से संबंधित समाचार ही क्यों पढ़ते हैं? हम क्यों इतने नकारात्मक हैं? एक और प्रश्न- एक राष्ट्र के तौर पर हम विदेशी वस्तुओं से इतना प्रभावित क्यों हैं? हमें विदेशी टी.वी. चाहिये, विदेशी कपड़े चाहिये, विदेशी तकनीक चाहिये. हर आयात की गई वस्तु से इतना लगाव क्यों? क्या हमें इस बात का अहसास है कि आत्म-सम्मान आत्म-निर्भरता के साथ ही आता है. मैं हैदराबाद में एक भाषण दे रहा था जब एक १४ वर्ष की लड़की मेरा ऑटोग्राफ़ लेने आयी. मैनें उससे पूछा उसके जीवन का उद्देश्य क्या है : उसने कहा – ‘मैं विकसित भारत में रहना चाहती हूँ’. मुझे और आपको, उसके लिये, ये विकसित भारत बनाना  ही होगा.”
यह पूरा लेख आप यहाँ  पढ़ सकते हैं. इस लेख यदि हमें कोई प्रेरणा मिली तो उसे हमें हृदय तक सीमित नहीं रखना है, हमें कर्म करना होगा, राष्ट्र-सेवा के मौके ढूँढने होंगे. समय आ गया है कि आज की युवा पीढ़ी परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाये. और यह हमारा विश्वास है कि जब हमारे देश कि लाखों-करोड़ों प्रतिभायें हाथ से हाथ मिला आगे बढ़ेंगी तो कोई शक्ति, कोई आपदा हमारे विकास का मार्ग नहीं रोक पायेगी.
इस के साथ आप सब से एक और प्रश्न करना चाहूँगी. एक बात को लेकर दुविधा में हूँ. कई बार अन्तर्जाल पर ऐसा कुछ दिख जाता है जो बहुत प्रेरणाप्रद लगता है. ऐसे में यह सोचती हूँ कि उसे चिट्ठे पर डालूँ य न डालूँ, क्योंकि वह मौलिक नहीं है. वैसे यह निजी सोच हो सकती है पर आप क्या कहते हैं? क्या नवीनता और मौलिकता को वरीयता दूँ या अगर कुछ अच्छा मिले तो सिर्फ़ बाँटने तथा औरों को भी वह दिशा दिखाने के उद्देश्य से यहाँ डालूँ, यह जानते हुए भी कि वह सामग्री और भी कहीं उपलब्ध है. आप अन्तत: क्या ढूँढते हैं किसी चिट्ठे पर?







Thursday, July 8, 2010

वैज्ञानिकों से दूर रहें राजनेता "अब्दुल कलाम"

मई 1974 में भारत का पहला  परमाणु परीक्षण में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सेथना ने राजनेताओं को सलाह दी है कि वो वैज्ञानिक मुद्दों से दूर रहें। इस मुद्दे पर राजनीति करने की जरूरत नहीं है। उन्‍होंने कहा, "जब हमने पहला परमाणु परीक्षण किया था, तब वहां कोई राजनेता नहीं था। वो एक कच्‍चा परीक्षण था। हम खुशकिस्‍मत है कि वो सब खत्‍म हो गया।"



गौरतलब है कि हाल ही में डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक डा. संथानम ने दावा किया था कि पोखरण में 1998 में हुए परमाणु परीक्षणों में से दूसरा परीक्षण सफल नहीं था, जिस पर बाद में डा. कलाम ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा था कि पोकरण द्वितीय पूरी तरह सफल था।
 
यही नहीं संथानम के इस खुलासे के बाद देश भर के राजनीतिक दलों ने तत्‍कालीन सत्‍ताधारी पार्टी राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पर उंगलियां उठानी शुरू कर दी थीं। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी यह साफ कर दिया कि वे परीक्षण पूरी तरह सफल था।

'पोकरण 2 पर कुछ नहीं जानते कलाम'

नई दिल्‍ली। परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्‍यक्ष डा. होमी नुसेरवांजी सेथना ने पूर्व राष्‍ट्रपति व परमाणु वैज्ञानिक डा. एपीजे अब्‍दुल कलाम के खिलाफ टिप्‍पणी करते हुए कहा है 1998 में हुए पोखरण द्वितीय परीक्षण पर बोलने का उन्‍हें कोई अधिकार नहीं है।


सीएनएन-आईबीएन से बातचीत के दौरान डा. होमी ने कहा कि डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक के संथानम के उस दावे, जिसमें उन्‍होंने कहा था कि पोखरण में हुआ दूसरा परमाणु परीक्षण सफल नहीं था, पर कलाम को बोलने का कोई अधिकार नहीं। होमी ने कहा, "परमाणु विस्‍फोटक बनाने के बारे में वो (कलाम) क्‍या जानते हैं। वो कुछ नहीं जानते थे। राष्‍ट्रपति होने के नाते वो सिर्फ इस उपलब्धि में शामिल हुए।"

मैं सौ प्रतिशत देसी हूं ! "अब्दुल कलाम"

अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम ने तमिलनाडु के एक छोटे से तटीय शहर में अख़बार बेचने से लेकर भारत रत्न तक का लंबा सफ़र तय किया है और अब वे भारत के राष्ट्रपति पद तक पहुँचे हैं.
चेन्नई से क़रीब 300 किलोमीटर दूर रामेश्वरम में 10 साल के स्कूली बच्चे अब्दुल कलाम अपने ग़रीब परिवार के भरण पोषण के लिए हर सुबह अख़बार बेचा करते थे.और 56 साल बाद वही अब्दुल कलाम भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं, अपनी सुरक्षा ख़ुद करने के कार्यक्रम के प्रेरणास्रोत हैं और भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पाने के बाद अब वे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए हैं.


अब तक अविवाहित पूरी तरह शाकाहारी प्रोफेसर कलाम को क़ुरान और गीता पर समान अधिकार है


और गीता के ही उपदेशों के अनुरूप उन्होंने हाल में कहा 'सपनों को विचारों में और उन विचारों को असलियत में बदलना चाहिए. हथियारों का आयात कर छोटा रास्ता मत अपनाइए. अपना काम ख़ुद करें.'


इस मूलमंत्र के साथ ही अब्दूल कलाम ने भारत के लिए ख़ुद ही हथियार विकसित करने के कार्यक्रम पर ज़ोर दिया.


उन्होंने कहा कि अमरीका के सुपर कंप्यूटर और रुस के क्रायोजेनिक अंतरिक्ष तकनीक देने से इनकार करने के बाद भारत ने परमाणु क्षमता विकसित करने के लिए ख़ुद ही अपना रास्ता तलाश किया है.


1998 में परमाणु परीक्षण करने के बाद उनसे एक अमरीकी पत्रकार ने पूछा कि क्या उन्होंने अमरीका में पढ़ाई की है.


इस पर अब्दुल कलाम ने कहा 'मैं सौ प्रतिशत देसी हूं.'

Tuesday, July 6, 2010

प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्हें चंद्र मिशन बहुत प्रिय है, ने शनिवार को चंद्रयान-1 पर भेजे गए टैरेन मैपिंग कैमरे से ली गई पृथ्वी की पहली तस्वीरों पर प्रसन्नता जताई ।

डॉ. कलाम देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों से गहराई से जुड़े रहे हैं । उन्होंने बताया कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, इसरो के अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने उन्हें पृथ्वी की पहली तस्वीरें दिखाईं ।

  डॉ. कलाम ने कहा कि ये बहुत अच्छी तस्वीरें हैं । उन्होंने कहा कि इनसे संकेत मिलता है कि हमारा भविष्य कैसा हो सकता है ।
 
चंद्रमा मिशन के बारे में उन्होंने कहा कि हर भारतीय को मिशन की सफलता पर गर्व होना चाहिए ।

  भारत के प्रथम चालक रहित अंतरिक्ष यान, चंद्रयान-1 पर भेजे गए टैरेन मैपिंग कैमरे ने गहरे अंतरिक्ष से पृथ्वी की श्याम-श्वेत तस्वीरें ली हैं । इस कैमरे को इसरो के बैंगलूरू स्थित टेलीमिट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क के अंतरिक्ष यान नियंत्रण केंद्र से कई निर्देशों के जरिये चलाया गया ।

पहला चित्र पृथ्वी के ऊपर करीब 9,000 किमी और दूसरा चित्र 70,000 किमी की ऊंचाई से लिया गया ।

Monday, July 5, 2010

भोपाल गैसकांड के दोषियों की सजा नाकाफी: डॉ. कलाम भेजें

इंदौर। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने आज कहा कि भोपाल गैसकांड मामले में अदालत का निर्णय नाकाफी है और यह जितनी बड़ी घटना थी, उसके अनुसार दोषियों को सजा नहीं मिली है।

डॉ. कलाम ने यहां प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में कहा कि हम न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश पर प्रश्न चिह्न नहीं उठा सकते, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि 26 वर्ष पुरानी इस घटना में जितने लोग प्रभावित हुए थे उस हिसाब से यह सजा पर्याप्त नहीं है।


भोपाल गैसकांड पीड़ित उच्च न्यायालय जाएंगे

उन्होंने जोर देते हुए कहा कि देश में कानून की जटिलताएं कम की जानी चाहिए। मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब तथा संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु की फांसी में हो रही देरी के विषय में उन्होंने कहा कि मेरा ऐसा मानना है कि हमारे देश में त्वरित न्यायालय होना चाहिए जो ऐसे मामलों में शीघ्र निर्णय दे सके, ताकि जनता का विश्वास न्याय व्यवस्था पर बना रहे।

डॉ. कलाम ने कहा अभी हमारे यहां कोई भी मामला पहले जिला न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय तक घूमता रहता है। यदि कोई मामला राष्ट्रपति के समक्ष आता भी है, तो राज्य सरकार उसकी फाइल अपने पास रख लेती है, जिससे उसमें फैसला करने में देरी होती है।

अफजल की फाइल आखिर गृह मंत्रालय को सौंपी गई

मिसाइलमेन ने थामी हरियाली



 नईदुनिया के "थाम लो हरियाली" अभियान को पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम ने भी समर्थन दिया। अपनी इंदौर यात्रा के दौरान मिसाइलमेन हरियाली को सहेजने का संदेश दे गए। डॉ.कलाम ने इस अभियान में भागीदारी करते हुए प्रेस क्लब परिसर में पौधारोपण किया। गुरुवार शाम प्रेस क्लब पहँुचने के साथ ही डॉ. कलाम को बच्चों ने घेर लिया। कतारबद्ध होकर बच्चे डॉ.कलाम के स्वागत में फूल लेकर खड़े थे। मिसाइलमेन ने नन्हें-मुन्नों को निराश नहीं किया। किसी से उन्होंने हाथ मिलाया तो किसी को ऑटोग्राफ दिया। बच्चों का दिल लुभाने के बाद डॉ. कलाम ने पर्यावरण सरंक्षण का संदेश दिया। डॉ.कलाम ने नईदुनिया के सीईओ विनय छजलानी के साथ मिलकर आम और अशोक के दो पौधे रोपे। इस मौके पर कलेक्टर राघवेंद्रसिंह, निगमायुक्त सीबी सिंह आदि भी मौजूद थे।








पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पौधा रोपते हुए। साथ में हैं नईदुनिया के सीईओ विनय छजलानी।; अभियान से जुड़े डॉ.कलाम, प्रेस क्लब में किया पौधारोपण 

Sunday, July 4, 2010

मदरसे में गूंजती हैं, गायत्री मंत्र की स्वर लहरियां... फ़िरदौस ख़ान

ॐ भूर्भुव: स्वः तत् सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheB1TYo7ov2mQXFLGPDj15c6u9wVx4ZdUvYvoAATHqk-7YVnixTAjEOg6i8AfGQnvrslUc7MeetEgnBkuSBOJwGf_zVe3_jgEbGD_PPkLg8qnSdkjXtHjeplYAqzXoO-FETxUFdDUCaTo/s320/flowers-ganga.jpgजी हां, यह बिलकुल सच है... उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर ज़िले के सतासीपुर स्थित नियामत-उलूम मदरसे में गायत्री मंत्र का पाठ होता है... ख़ास बात यह है कि मदरसे में सबसे पहले वन्दे मातरम् गाया जाता है...उसके बाद क़ुरआन की तिलावत होती है... इसके साथ ही गीता और रामायण का भी पाठ होता है...

संस्कृत के शिक्षक अब्दुल कलाम कहते हैं कि हमारा मक़सद बच्चों को क़ुरआन, गीता और रामायण की तालीम देकर बेहतर इंसान बनाना है... मज़हब के नाम पर दंगे-फ़साद फैलाने वालों को इससे सबक़ लेना चाहिए...

क़रीब तीन दशक पहले 1976 में मौलवी मेहराब हासिम ने इस मदरसे की स्थापना की थी. इस मदरसे में लगभग 200 छात्र तालीम हासिल कर रहे हैं, जिनमें हिन्दू बच्चे भी शामिल हैं...

मदरसे के संस्थापक व प्राधानाचार्य मौलवी मेहराब हासिम का कहना है कि राष्ट्रहित से ऊंचा कोई नहीं है और वंदे मातरम् तो हमारे देश का गुणगान है. ऐसे में यह समझ में नहीं आता कि वंदे मातरम् गाने पर कुछ मज़हब के ठेकेदार क्यों ऐतराज़ जताते हैं. ये शर्मनाक, गंभीर और सोचनीय है...

एक तरफ़ जहां हिन्दुस्तान में मज़हब के नाम पर नफ़रत फैलाने का काम किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ़ ऐसे लोग भी हैं जो गंगा-जमुनी तहज़ीब को बढ़ावा दे रहे हैं... यक़ीनन ऐसे लोग ही इंसानियत को ज़िंदा रखे हुए हैं.

Friday, July 2, 2010

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम रचित प्रार्थना: अदम्य साहस जगाइए!

अदम्य साहस जगाइए!

मेरे प्रभु, तेरे चरणों में पहुँचे मेरी यह प्रार्थना

दूर कर दो, प्रभु, मेरे ह्नदय की क्षुद्रता,

दो मुझे शक्ति सहज भाव से

अपने आनंद और विषाद सहने की।

दो मुझे शक्ति

जिससे मेरा अनुराग तेरी सेवा में सुफल हो।

प्रभु, ऐसी शक्ति दो मुझे

कि दीनजन से किसी विमुख न होऊँ मैं

ऐसी शक्ति मुझे दो प्रभु,

कि उद्धत-उन्मत्त किसी शक्ति के आगे घुटने न टेकूँ कभी।

प्रभु ऐसी शक्ति दो मुझे

कि दिनानुदिन की क्षुद्रताओं के सम्मुख

सिर सदा मेरा ऊँचा रहे।

मेरे प्रभु, शक्ति दो मुझे

कि सादर-सप्रेम अपनी शक्ति-सामथ्र्य सारी

अर्पित कर पाऊँ मैं तुम्हारे श्रीचरणों में

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की कृति अदम्य साहस

‘‘किस रुप में याद रखे जाने की आपकी आकांक्षा है? आपको अपने को विकसित करना होगा और जीवन को एक आकार देना होगा। अपनी आकांक्षा को, अपने सपने को, एक पृष्ठ पर शब्दबद्ध कीजिए। यह मानव इतिहास का एक बहुत महत्वपूर्ण पृष्ठ हो सकता है। राष्ट्र के इतिहास में एक नया पृष्ठ जोड़ने के लिए आपको याद रखा जाएगा। भले वह पृष्ठ ज्ञान-विज्ञान का हो, परिवर्तन का, या खोज का हो, या फिर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का।’’
… ये शब्द हैं भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के, अदम्य साहस से उद्धृत, सीधे दिल की गहराई से निकले सादा शब्द, गहन चिंतन की छाप छोड़ते और बुनियादी मुद्दों के बारे में उनके गहरे विचारों की झलक देते। लगभग जादुई असर वाले ये शब्द प्रेरणा जगाते हैं, और एक ऐसे विकसित देश का सपना संजोते हैं जो ‘सारे जहाँ से अच्छा’ है।
मानवीय, राष्ट्रीय  और वैश्विक सरोकारों से जुड़े, चिरयुवा स्वभाव वाले, डा. कलाम के ये शब्द कर्मपथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा जगाते हैं और ऊर्जा देते हैं।
अदम्य साहस ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के जीवन-दर्शन और चिंतन का सारतत्व है। रामेश्वरम् के सागरतट से राष्ट्रपति भवन तक फैले उनके जीवन और जीवन-दर्शन का आइना है। अदम्य साहस देश के पूर्व प्रथम नागरिक के दिल से निकली वह आवाज है, जो गहराई के साथ देश और देशवासियों के सुनहरे भविष्य के बारे में सोचती है। यह पुस्तक जीवन के अनुभवों से जुड़े संस्मरणों, रोचक प्रसंगों, मौलिक विचारों और कार्य-योजनाओं का प्रेरणाप्रद चित्रण है। एक चिंतक के रुप में, एक वैज्ञानिक और एक शिक्षक के रुप में तथा राष्ट्रपति के अनेक प्रेरणादायी पक्ष इस पुस्तक में सजीव उठे हैं, जो उनके भाषणों और आलेखों पर आधारित हैं।
युवाओ के लिए प्रेरणा दायक गत सदी की श्रेष्ठतम पुस्तक है। इसमें श्री कलाम साहब को प्रेरित करने वाले व्यक्तित्व उनकी ममतामयी मां, भारतरत्न एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी एवं पांच महान वैज्ञानिक प्रो. विक्रम साराभाई, प्रो. सतीश धवन, प्रो. ब्रह्य प्रकाश, प्रो. एम जी के मेनन एवं राजा रमन्ना का वर्णन है। इसमें लिखा है कि जो समाज में परिवर्तन ला सकते हैं, वे माता,पिता और शिक्षक।इसमें लिखा है कि शिक्षक से अधिक महत्वपूर्ण दायित्व किसी का नहीं है।एक शिक्षक का जीवन कई दीपों को प्रज्वलित करता है। शिक्षक की भूमिका उस सीढ़ी जैसी है जिसके द्वारा लोग जीवन की ऊँचाइयों को छूते हैं, लेकिन सीढ़ी वहीं की वहीं रहती है।
पुस्तक का प्रकाशन  राजपान एन्ड सन्स दिल्ली ने किया है। छपाई श्रेष्ठ है व फोटो ग्राफ्स का चयन प्रसंगानुकूल  है। विस्तार से सन्दर्भ दिये हुवे है। इस तरह पुस्तक अच्छी पढ़ने योग्य व प्रेरक है।

अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम (जन्म 15 अक्तूबर, 1931, रामेश्वरम, तमिलनाडू, भारत), जिन्हें आमतौर पर डाक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम से जाना जाता है वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता हैं।

धनुषकोडी गाँव जो कि तमिलनाडू में है के एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में जन्मे कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेकनालजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसलवी3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। अवुल पकीर जैनुलबीदीन अब्दुल कलाम को भारत सरकार द्वारा १९८१ में प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान "गाइडेड मिसाइल" के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल और पृथवी मिसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को है। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ।

डाक्टर कलाम को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1997 में सम्मानित किया गया। 18 जुलाई, 2002 को डाक्टर कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया और उन्होंने 25 जुलाई को अपना पदभार ग्र्हण किया। इस पद के लिये उनका नामांकन उस समय सत्तासीन राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन की सरकार ने किया था जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सम्रथन हासिल हुआ था। उनका विरोध करने वालों में उस समय सबसे मुख्य दल भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और अन्य वामपंथी सहयोगी दल थे। वामपंथी दलों ने अपनी तरफ से 87 वर्षीया श्रीमती लक्ष्मी सहगल का नामांकन किया था जो सुभाषचंद्र बोस के आज़ाद हिंद फौज में और द्वितीय विश्वयुद्ध में अपने योगदान के लिये जानी जाती हैं।

डाक्टर अपने व्यक्तिगत जीवन में पूरी तरह अनुशासन शाकाहार और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों में से हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे क़ुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्यन करते हैं। कलाम ने कई स्थानों पर उल्लेख किया है कि वे तिरुक्कुराल का भी अनुसरण करते हैं, उनके भाषणों में कम से कम एक कुराल का उल्लेख अवश्य रहता है। राजनैतिक स्तर पर कलाम की चाहत है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका विस्तार हो और भारत ज्यादा से ज्याद महत्वपूर्ण भूमिका निभाये। भारत को महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढाते देखना उनकी दिली चाहत है। उन्होंने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की है और वे तकनीक को भारत के जनसाधारण तक पहुँचाने की हमेशा वक़ालत करते रहे हैं। बच्चों और युवाओं के बीच डाक्टर क़लाम अत्यधिक लोकप्रिय हैं।