"धन्य नम्र हैं, क्योंकि वे इस दुनिया वारिस" बाइबिल का दावा है. भारत रत्न डॉ. Avul पाकिर Jainulabdeen अब्दुल कलाम एक विनम्र आत्मा, तमिलनाडु में रामेश्वरम में पैदा हुआ, 2002 में 71 वर्ष की उम्र में भारतीय संघ के अध्यक्ष जहाज करने के लिए गुलाब. हालांकि वह 71 था, वह एक 17 वर्षीय लड़के के एक उत्साह था. उसे बुलाओ एक दूरदर्शी के रूप में या एक एरोनॉटिकल इंजीनियर, वैज्ञानिक या एक, या एक मिसाइल आदमी, फिर भी वह और अधिक अपने मानव संबंधों के लिए लोकप्रिय है. वह हमेशा एक व्यक्ति जो वकालत के रूप में याद किया जाएगा सपने और विकास के लिए. डा. कलाम ने निश्चित रूप से भारत की कल्पना की अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मैं उसे डॉक्टर के रूप में कहते हैं, वह विश्व भर में विश्वविद्यालयों से नहीं क्योंकि 30 डॉक्टरेट प्राप्त नहीं, क्योंकि वह अभी भी एक स्नातक है, इसलिए नहीं कि वह पद्म विभूषण या Bharth रत्न के एक प्राप्तकर्ता गया था क्योंकि वह तो उच्चतम बुलाया स्थिति आयोजित नहीं है, एक परमाणु वैज्ञानिक के रूप में उनकी भूमिका की वजह से नहीं, राष्ट्रपति की, लेकिन उनके प्रेरणादायक भाषण के लिए बच्चों को प्रेरित करने के लिए और उन्हें बड़ा सपना करने के लिए. वह के साथ युवा भारतीय समाज doctored उनके नीचे के इस 'दिल के भाषण से. वह खुद को 'पवित्र Thirukkural' और कहा कि निविदा दिल में जादू काम किया पढ़ कर प्रेरणा आकर्षित किया. वह सुनिश्चित करने के लिए एक चिकित्सक है, क्योंकि वह समाज शुद्ध है. अब्दुल कलाम पुस्तक 'भारत 2020 के माध्यम से अपने' दृष्टि प्रकट. किताब एक ज्ञान महाशक्ति में रणनीति है कि 2020 तक देश के विकास के मार्गदर्शन करेगा, डाला गया है. Dr.A.P.J. अब्दुल कलाम ने खुद के परमाणु कार्यक्रम में उनके नेतृत्व के माध्यम से राष्ट्र के विकास में भाग लिया. कलाम एक शिक्षक ख़ासकर था. डॉ. कलाम प्रथाओं शाकाहार और कहा कि केवल साथी प्राणियों के लिए उसकी दया सबूत. वह अपनी 'आत्मकथा के माध्यम से अपने अनुभव साझा किए और आग के पंख' विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लाभ पाने के बारे में एक धारणा आगे प्रेरित किया. डा. A.P.J. अब्दुल कलाम सिर्फ पदार्थ के एक आदमी और एक करिश्माई नेता नहीं है, लेकिन यह भी एक महात्मा अपने जीवन भर.
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बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं. बस जी नहीं किया. इस बीच बड़ी बड़ी घटनायें हो गयीं भारत में. मैं कुछ लिखने के बजाय बस यह सोचती रह गयी कि क्या हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इसी भारत का सपना देखा था. अगर नहीं तो कहाँ चूक गये हम. आज अन्तर्जाल पर ऐसे ही विचरते हुए श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के एक लेख ने ध्यान आकर्षित किया, शीर्षक था–’भारतीय होने पर गर्व करें’. आज के समय में यदि राजनीति से जुड़े किसी व्यक्ति ने मेरे मानसपटल पर छाप छोड़ी है तो वे हैं हमारे माननीय राष्ट्रपति महोदय. अत्यंत ज्ञानी, विद्वान तथा अनुभवी श्री कलाम अपने ज्ञान, सकारात्मक एवं वैज्ञानिक सोच तथा विनम्र व्यवहार के कारण सदा ही मेरे लिये श्रद्धेय रहे हैं. उनके शब्दों ने मन में हमेशा एक आशा तथा ऊर्जा का संचार किया है. अत: उनके लेखन के प्रति मेरा सहज आकर्षण स्वाभाविक है. मुझे नहीं पता कि इस लेख को कितने लोगों ने पढ़ा है पर इस लेख को पढ़ कर मुझे ये अवश्य लगा कि हर भारतीय को इसे पढ़ना चाहिये. अत: उनके इस लेख के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ जिन्होंने मुझे न सिर्फ़ अत्यधिक प्रभावित किया अपितु मेरी सोच को एक नयी दिशा दी.
” भारत को लेकर मेरे तीन दृष्टव्य हैं. हमारे इतिहास के तीन हज़ार सालों में दुनिया भर के लोगों ने हम पर आक्रमण किये हैं, हमारी ज़मीनें हथियायी हैं, हमारे दिमाग़ों पर विजय पायी है. सिकंदर के बाद से ग्रीक, तुर्क, मुसलमान, पुर्तगाली, बर्तानी, फ़्रांसीसी तथा डच सभी आये, हमें लूटा और जो हमारा था वह ले के चले गये. किंतु इसके बाद भी हमने किसी राष्ट्र के साथ ऐसा नहीं किया. हमने कभी किसी पर विजय पाने की कोशिश नहीं की, उनकी ज़मीन, सभ्यता तथा इतिहास पर आधिपत्य स्थापित करने की चेष्टा नहीं की. अपना जीने का ढंग किसी पर नहीं थोपा. क्यों? क्योंकि हम दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं.
इसीलिये भारत को लेकर मेरा पहला दृष्टव्य स्वतंत्रता से संबधित है. मुझे लगता है कि भारत को यह द्रष्टव्य १८५७ में मिला जब स्वतंत्रता की लड़ाई की शुरुआत हुई. हमें अपनी इस स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिये, इसका सम्मान करना चाहिये. यदि हम स्वतंत्र नहीं है तो कोई हमारा सम्मान नहीं करेगा.
भारत को लेकर मेरा दूसरा दृष्टव्य प्रगति को लेकर है. ५० सालों से हम एक विकासशील देश हैं. अब समय आ चुका है कि हमें स्वयं को विकसित देश के रूप में देखना होगा. जी.डी.पी. की दृष्टि से हम विश्व के प्रथम पाँच राष्ट्रों में से हैं. अधिकांश क्षेत्रों में हमारी विकास दर १० % के लगभग है. हमारा गरीबी का स्तर गिरा है. हमारी उपलब्धियाँ विश्व स्तर पर पहचान पा रही हैं. इसके बाद भी हम में आत्म-विश्वास की कमी है जो हम खुद को एक विकसित, आत्म निर्भर तथा आश्वस्त देश के रूप में नहीं देख पाते. क्या यह उचित है?
मेरा तीसरा द्रष्टव्य है कि भारत को विश्व के सामने खड़ा होना होगा. शक्तिशाली शक्ति का ही सम्मान करते हैं. हमें न सिर्फ़ सैन्य दृष्टि से अपितु आर्थिक दृष्टि से भी सुदृढ़ होना होगा. ये दोनों साथ-साथ चलते हैं.
……..
आण्विक ऊर्जा विभाग तथा डी.आर.डी.ओ. की हाल ही में ११ तथा १३ मई को हुए नाभिकीय परीक्षणों में महत्वपूर्ण भागीदारी रही. अपनी टीम के साथ इन परीक्षणों मे भाग लेने तथा विश्व को यह दिखा पाने कि भारत यह कर सकता है एवं अब हम एक विकासशील देश नहीं अपितु विकसित देशों में एक हैं, की खुशी मेरे लिये अतुलनीय है. इससे मुझे भारतीय होने पर बेहद गर्व हुआ. हमने ‘अग्नि’ के पुनरागमन के लिये भी एक अन्य ढाँचा तैयार किया है जिसके लिये हमने एक अत्यंत हलके पदार्थ का विकास किया है. बहुत ही हलका पदार्थ जिसे कार्बन-कार्बन कहते हैं.
एक दिन ‘निज़ाम इन्स्टिट्यूट ऑव़ मेडिकल साइंसज़’ के एक हड्डी रोग विशेषज्ञ मेरी प्रयोगशाला में आये. उन्होंने वह पदार्थ उठाया और पाया कि वह बहुत हल्का था. उसके बाद वह मुझे अपने अस्पताल ले गये, मरीज़ों से मिलवाने के लिये. वहाँ छोटे-छोटे लड़के और लड़कियाँ भारी भारी धात्विक कैलीपर पहने हुए थे. लगभग तीन-तीन किलो वज़न वाले कैलीपर पहन कर ये बच्चे किसी प्रकार अपने पैरों को घसीट रहे थे. डॉक्टर ने मुझसे कहा – ‘मेरे मरीज़ों का कष्ट दूर कर दीजिये’. मात्र तीन हफ़्ते में हमने ३०० ग्राम के वज़न वाले कैलीपर का निर्माण कर लिया. जब हम उन्हें लेकर अस्पताल गये तो बच्चे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाये. अब वे घिसटने की बजाय आराम से चल सकते थे. उनके माता-पिता के नेत्र हर्षातिरेक से भर आये. इस कार्य से मुझे स्वर्गीय-सुख मिला.
हम अपने देश में अपनी ही क्षमताओं और उपलब्धियों को पहचानने में क्यों हिचकिचाते हैं? हम एक अत्यंत गौरवशाली राष्ट्र हैं. हमारी सफलता की कितनी ही अद्भुत कहानियाँ हैं जिन्हें हम अनदेखा कर देते हैं. क्यों? हम विश्व में गेहूँ के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. हम चावल के भी दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. दुग्ध-उत्पादन में हम प्रथम स्थान पर हैं. ‘रिमोट सेन्सिंग सैटेलाइट’ के क्षेत्र में भी हम प्रथम हैं.
डॉ. सुदर्शन को देखिये. उन्होंने एक आदिवासी गाँव को स्व-पोषित आत्म-निर्भर इकाई में बदल दिया. ऐसे लाखों उदाहरण हैं किंतु हमारे मीडिया को मुख्यत: बुरी खबरों, असफलताओं तथा आपदाओं की धुन लगी रहती है. एक बार मैं तेल अवीव में था और इज़राइली समाचार पत्र पढ़ रहा था. यह दिन उस दिन के बाद का था जब बहुत से हमले और बमबारी हो के चुकी थी. बहुत से लोग काल का ग्रास बन चुके थे. हमस ने हमला किया था. किंतु समाचार पत्र के पहले पन्ने पर एक ज्यूइश सज्जन का चित्र था जिन्होंने पाँच साल में अपनी बंजर रेगिस्तान ज़मीन को हरे-भरे बाग़ मे बदल दिया. हर इंसान ने उठते ही ऐसी प्रेरणाप्रद तस्वीर देखी. हत्या, बमबारी तथा मृत्यु के भयावह समाचार भीतर के पन्नों में अन्य समाचारों के बीच दफ़्न थे.
भारत में हम सिर्फ़ मृत्यु, बीमारी, आतंकवाद तथा अपराध से संबंधित समाचार ही क्यों पढ़ते हैं? हम क्यों इतने नकारात्मक हैं? एक और प्रश्न- एक राष्ट्र के तौर पर हम विदेशी वस्तुओं से इतना प्रभावित क्यों हैं? हमें विदेशी टी.वी. चाहिये, विदेशी कपड़े चाहिये, विदेशी तकनीक चाहिये. हर आयात की गई वस्तु से इतना लगाव क्यों? क्या हमें इस बात का अहसास है कि आत्म-सम्मान आत्म-निर्भरता के साथ ही आता है. मैं हैदराबाद में एक भाषण दे रहा था जब एक १४ वर्ष की लड़की मेरा ऑटोग्राफ़ लेने आयी. मैनें उससे पूछा उसके जीवन का उद्देश्य क्या है : उसने कहा – ‘मैं विकसित भारत में रहना चाहती हूँ’. मुझे और आपको, उसके लिये, ये विकसित भारत बनाना ही होगा.”
यह पूरा लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं. इस लेख यदि हमें कोई प्रेरणा मिली तो उसे हमें हृदय तक सीमित नहीं रखना है, हमें कर्म करना होगा, राष्ट्र-सेवा के मौके ढूँढने होंगे. समय आ गया है कि आज की युवा पीढ़ी परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाये. और यह हमारा विश्वास है कि जब हमारे देश कि लाखों-करोड़ों प्रतिभायें हाथ से हाथ मिला आगे बढ़ेंगी तो कोई शक्ति, कोई आपदा हमारे विकास का मार्ग नहीं रोक पायेगी.
इस के साथ आप सब से एक और प्रश्न करना चाहूँगी. एक बात को लेकर दुविधा में हूँ. कई बार अन्तर्जाल पर ऐसा कुछ दिख जाता है जो बहुत प्रेरणाप्रद लगता है. ऐसे में यह सोचती हूँ कि उसे चिट्ठे पर डालूँ य न डालूँ, क्योंकि वह मौलिक नहीं है. वैसे यह निजी सोच हो सकती है पर आप क्या कहते हैं? क्या नवीनता और मौलिकता को वरीयता दूँ या अगर कुछ अच्छा मिले तो सिर्फ़ बाँटने तथा औरों को भी वह दिशा दिखाने के उद्देश्य से यहाँ डालूँ, यह जानते हुए भी कि वह सामग्री और भी कहीं उपलब्ध है. आप अन्तत: क्या ढूँढते हैं किसी चिट्ठे पर?
” भारत को लेकर मेरे तीन दृष्टव्य हैं. हमारे इतिहास के तीन हज़ार सालों में दुनिया भर के लोगों ने हम पर आक्रमण किये हैं, हमारी ज़मीनें हथियायी हैं, हमारे दिमाग़ों पर विजय पायी है. सिकंदर के बाद से ग्रीक, तुर्क, मुसलमान, पुर्तगाली, बर्तानी, फ़्रांसीसी तथा डच सभी आये, हमें लूटा और जो हमारा था वह ले के चले गये. किंतु इसके बाद भी हमने किसी राष्ट्र के साथ ऐसा नहीं किया. हमने कभी किसी पर विजय पाने की कोशिश नहीं की, उनकी ज़मीन, सभ्यता तथा इतिहास पर आधिपत्य स्थापित करने की चेष्टा नहीं की. अपना जीने का ढंग किसी पर नहीं थोपा. क्यों? क्योंकि हम दूसरों की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं.
इसीलिये भारत को लेकर मेरा पहला दृष्टव्य स्वतंत्रता से संबधित है. मुझे लगता है कि भारत को यह द्रष्टव्य १८५७ में मिला जब स्वतंत्रता की लड़ाई की शुरुआत हुई. हमें अपनी इस स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिये, इसका सम्मान करना चाहिये. यदि हम स्वतंत्र नहीं है तो कोई हमारा सम्मान नहीं करेगा.
भारत को लेकर मेरा दूसरा दृष्टव्य प्रगति को लेकर है. ५० सालों से हम एक विकासशील देश हैं. अब समय आ चुका है कि हमें स्वयं को विकसित देश के रूप में देखना होगा. जी.डी.पी. की दृष्टि से हम विश्व के प्रथम पाँच राष्ट्रों में से हैं. अधिकांश क्षेत्रों में हमारी विकास दर १० % के लगभग है. हमारा गरीबी का स्तर गिरा है. हमारी उपलब्धियाँ विश्व स्तर पर पहचान पा रही हैं. इसके बाद भी हम में आत्म-विश्वास की कमी है जो हम खुद को एक विकसित, आत्म निर्भर तथा आश्वस्त देश के रूप में नहीं देख पाते. क्या यह उचित है?
मेरा तीसरा द्रष्टव्य है कि भारत को विश्व के सामने खड़ा होना होगा. शक्तिशाली शक्ति का ही सम्मान करते हैं. हमें न सिर्फ़ सैन्य दृष्टि से अपितु आर्थिक दृष्टि से भी सुदृढ़ होना होगा. ये दोनों साथ-साथ चलते हैं.
……..
आण्विक ऊर्जा विभाग तथा डी.आर.डी.ओ. की हाल ही में ११ तथा १३ मई को हुए नाभिकीय परीक्षणों में महत्वपूर्ण भागीदारी रही. अपनी टीम के साथ इन परीक्षणों मे भाग लेने तथा विश्व को यह दिखा पाने कि भारत यह कर सकता है एवं अब हम एक विकासशील देश नहीं अपितु विकसित देशों में एक हैं, की खुशी मेरे लिये अतुलनीय है. इससे मुझे भारतीय होने पर बेहद गर्व हुआ. हमने ‘अग्नि’ के पुनरागमन के लिये भी एक अन्य ढाँचा तैयार किया है जिसके लिये हमने एक अत्यंत हलके पदार्थ का विकास किया है. बहुत ही हलका पदार्थ जिसे कार्बन-कार्बन कहते हैं.
एक दिन ‘निज़ाम इन्स्टिट्यूट ऑव़ मेडिकल साइंसज़’ के एक हड्डी रोग विशेषज्ञ मेरी प्रयोगशाला में आये. उन्होंने वह पदार्थ उठाया और पाया कि वह बहुत हल्का था. उसके बाद वह मुझे अपने अस्पताल ले गये, मरीज़ों से मिलवाने के लिये. वहाँ छोटे-छोटे लड़के और लड़कियाँ भारी भारी धात्विक कैलीपर पहने हुए थे. लगभग तीन-तीन किलो वज़न वाले कैलीपर पहन कर ये बच्चे किसी प्रकार अपने पैरों को घसीट रहे थे. डॉक्टर ने मुझसे कहा – ‘मेरे मरीज़ों का कष्ट दूर कर दीजिये’. मात्र तीन हफ़्ते में हमने ३०० ग्राम के वज़न वाले कैलीपर का निर्माण कर लिया. जब हम उन्हें लेकर अस्पताल गये तो बच्चे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाये. अब वे घिसटने की बजाय आराम से चल सकते थे. उनके माता-पिता के नेत्र हर्षातिरेक से भर आये. इस कार्य से मुझे स्वर्गीय-सुख मिला.
हम अपने देश में अपनी ही क्षमताओं और उपलब्धियों को पहचानने में क्यों हिचकिचाते हैं? हम एक अत्यंत गौरवशाली राष्ट्र हैं. हमारी सफलता की कितनी ही अद्भुत कहानियाँ हैं जिन्हें हम अनदेखा कर देते हैं. क्यों? हम विश्व में गेहूँ के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. हम चावल के भी दूसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं. दुग्ध-उत्पादन में हम प्रथम स्थान पर हैं. ‘रिमोट सेन्सिंग सैटेलाइट’ के क्षेत्र में भी हम प्रथम हैं.
डॉ. सुदर्शन को देखिये. उन्होंने एक आदिवासी गाँव को स्व-पोषित आत्म-निर्भर इकाई में बदल दिया. ऐसे लाखों उदाहरण हैं किंतु हमारे मीडिया को मुख्यत: बुरी खबरों, असफलताओं तथा आपदाओं की धुन लगी रहती है. एक बार मैं तेल अवीव में था और इज़राइली समाचार पत्र पढ़ रहा था. यह दिन उस दिन के बाद का था जब बहुत से हमले और बमबारी हो के चुकी थी. बहुत से लोग काल का ग्रास बन चुके थे. हमस ने हमला किया था. किंतु समाचार पत्र के पहले पन्ने पर एक ज्यूइश सज्जन का चित्र था जिन्होंने पाँच साल में अपनी बंजर रेगिस्तान ज़मीन को हरे-भरे बाग़ मे बदल दिया. हर इंसान ने उठते ही ऐसी प्रेरणाप्रद तस्वीर देखी. हत्या, बमबारी तथा मृत्यु के भयावह समाचार भीतर के पन्नों में अन्य समाचारों के बीच दफ़्न थे.
भारत में हम सिर्फ़ मृत्यु, बीमारी, आतंकवाद तथा अपराध से संबंधित समाचार ही क्यों पढ़ते हैं? हम क्यों इतने नकारात्मक हैं? एक और प्रश्न- एक राष्ट्र के तौर पर हम विदेशी वस्तुओं से इतना प्रभावित क्यों हैं? हमें विदेशी टी.वी. चाहिये, विदेशी कपड़े चाहिये, विदेशी तकनीक चाहिये. हर आयात की गई वस्तु से इतना लगाव क्यों? क्या हमें इस बात का अहसास है कि आत्म-सम्मान आत्म-निर्भरता के साथ ही आता है. मैं हैदराबाद में एक भाषण दे रहा था जब एक १४ वर्ष की लड़की मेरा ऑटोग्राफ़ लेने आयी. मैनें उससे पूछा उसके जीवन का उद्देश्य क्या है : उसने कहा – ‘मैं विकसित भारत में रहना चाहती हूँ’. मुझे और आपको, उसके लिये, ये विकसित भारत बनाना ही होगा.”
यह पूरा लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं. इस लेख यदि हमें कोई प्रेरणा मिली तो उसे हमें हृदय तक सीमित नहीं रखना है, हमें कर्म करना होगा, राष्ट्र-सेवा के मौके ढूँढने होंगे. समय आ गया है कि आज की युवा पीढ़ी परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाये. और यह हमारा विश्वास है कि जब हमारे देश कि लाखों-करोड़ों प्रतिभायें हाथ से हाथ मिला आगे बढ़ेंगी तो कोई शक्ति, कोई आपदा हमारे विकास का मार्ग नहीं रोक पायेगी.
इस के साथ आप सब से एक और प्रश्न करना चाहूँगी. एक बात को लेकर दुविधा में हूँ. कई बार अन्तर्जाल पर ऐसा कुछ दिख जाता है जो बहुत प्रेरणाप्रद लगता है. ऐसे में यह सोचती हूँ कि उसे चिट्ठे पर डालूँ य न डालूँ, क्योंकि वह मौलिक नहीं है. वैसे यह निजी सोच हो सकती है पर आप क्या कहते हैं? क्या नवीनता और मौलिकता को वरीयता दूँ या अगर कुछ अच्छा मिले तो सिर्फ़ बाँटने तथा औरों को भी वह दिशा दिखाने के उद्देश्य से यहाँ डालूँ, यह जानते हुए भी कि वह सामग्री और भी कहीं उपलब्ध है. आप अन्तत: क्या ढूँढते हैं किसी चिट्ठे पर?